Shayari
Jo Hum MeiN Tum MeiN
तुम्हें भुलाने की हुई हमसे कोई भी दुआ नहींकोशिश नहीं की, कभी मुनासिब लगा नहींमै पूरी सच्चाई से निभा रहा हूँ उस करार कोए जान-ए-दिल जो हम में तुम में हुआ ही नहीं
तेरी आँखों के किनारे
तेरी आँखों के किनारेअपने सपनों की कश्ती छोड़ आया हूँतूने दिल से बेघर कियामै अपनी बसाई बस्ती छोड़ आया हूँ
Uski Ujli Hatheli Pe
उस की उजली हथेली परमेहंदी से बना एक चाँद थावहीं क़रीब में एक सितारे परमेरी आरज़ू का ख़्वाब था…
Hello, Jo Tum Kaho
The title of the book changed from Musafir Ki NAzmeiN to ‘Jo Tum Kaho’ based on its maiden poetry, which I had written for Shipra years ago.
हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये
देवी नागरानी
तिरंगा हमारा हो ऊँचा जहाँ
निगाहों में वो आसमाँ चाहिये
खिले फूल भाषा के ‘देवी’ जहाँ
उसी बाग़ में आशियाँ चाहिये.