Love Poetry

Dhoop Ki RaunakeiN

उठ चुकीं हैं देख लो, धूप की रौनक़ें पहले ही
बची हुई रौशनी में, एक शाम कहो तो बना दूँ

Woh AankheiN

वो आँखें भुला दें कैसे कहो
किसी भी ग़ज़ल में उतरती नहीं

जो उठते हैं पलकों के परदे ज़रा
निशाने से पहले ठहरतीं नहीं

Tere Andaaz

मेरे अल्फ़ाज़ में
तेरे अन्दाज़ गर
शामिल ना होते

मुझे ख़यालों के
ये सब अहसास
हासिल ना होते

Tanhaai

मैने ख़ुद ही चुनी थी
सो मैने ये पाई है
हूँ मै रास्तों पे जिनकी
मंज़िल ही तनहाई है

Uski AankheiN

उसकी आँखें जो ठहर जाती हैं
मेरी आँखों पर
मुद्दतों तक मुझे तन्हाई से निजात होता है

Wo AankhoN meiN Rahta bhi nahiN

वो आँखों में रहता भी नहीं
वो आँखों से बहता भी नहीं
वो ख़फ़ा है आँखों की नमी पर
वो आँखों को सहता भी नहीं