हमने सितारों से हाथ हैं जलाये
हमने उजालों से चाँद हैं बुझाये
अये ज़िंदगी अब इतनी इल्तिजा है
इतना थका दे के नींद आ जाये
lyricist prashant
Tujh Dariya MeiN Utar Gaye
देखे तुम्हारे जलवे
अपनी हस्ती से मुकर गए
हम समंदर थे मगर
तुझ दरिया में उतर गए
Qaabil-e-Dushmani
लोग ऐसे हैं के कोई हमनशीं नहीं होता
आदमी की शक्ल में भी कोई आदमी नहीं होता
लौटा दिया जो आए थे दरखास्त लेकर
अब हर कोई तो काबिल-ए-दुश्मनी नहीं होता
चाँद की बातें
कभी चाँद की बातें होतीं हैं
कभी ज़िकर तुम्हारा होता है
यूँ ही तनहाई के अंधेरों में
गुज़र हमारा होता
Dhoop Ki RaunakeiN
उठ चुकीं हैं देख लो, धूप की रौनक़ें पहले ही
बची हुई रौशनी में, एक शाम कहो तो बना दूँ
Yeh ZulfoN Ki Badlee
सुबहा की फ़िज़ा में नशा घोलती हो
ये ज़ुल्फ़ों की बदली जो तुम खोलती हो
Buri Baat Hai
सदाक़त में भी ज़िंदा हो, बड़ी बात है
यहाँ तो अच्छा होना ही बुरी बात है
Woh AankheiN
वो आँखें भुला दें कैसे कहो
किसी भी ग़ज़ल में उतरती नहीं
जो उठते हैं पलकों के परदे ज़रा
निशाने से पहले ठहरतीं नहीं
Khwaab Dekha Keejiye
फूलों से मिलिये
चाँद से बातें कीजिए
हक़ीक़त में सुंदर होते हैं
ख़्वाब देखा कीजिए
Khoobsurati Ki Intehaa
वो गहरी ज़ुल्फ़ों के छल्लों का उसके रुख़सार से खेलना
जन्नत की ख़ूबसूरती की इंतहा, इस मंज़र का क़तरा भर है