Aankhein

Woh AankheiN

वो आँखें भुला दें कैसे कहो
किसी भी ग़ज़ल में उतरती नहीं

जो उठते हैं पलकों के परदे ज़रा
निशाने से पहले ठहरतीं नहीं

Uski AankheiN

उसकी आँखें जो ठहर जाती हैं
मेरी आँखों पर
मुद्दतों तक मुझे तन्हाई से निजात होता है