Iltijaa
कहाँ तक इल्तिजा की जाए
ये आरज़ू अब भुला दी जाए
हो गई आदत अंधेरों की
क्यों ना शम्मा बुझा दी जाए
Prashant V Shrivastava (Musafir)
कहाँ तक इल्तिजा की जाए
ये आरज़ू अब भुला दी जाए
हो गई आदत अंधेरों की
क्यों ना शम्मा बुझा दी जाए
Prashant V Shrivastava (Musafir)
मुद्दतों से ज़माने के दबे कुचले
ख़यालात को रास्ता हो जाता है
शायरी ज़माने को ख़ुश रखती हैं
और मेरा दिल हल्का हो जाता हैं
आँखों में नींद का बुलबुला सा था
ज़रा आँख खुली तो कहीं उड़ गया
उसके जाते ही याद का क़ाफ़िला आया
फिर ना नींद लौटी मेरी ना तेरी याद गई
Mujhe milaakar, meri har cheez, badal chuki hai
Nahi badle, to mere khwaan, wo ab bhi wahi haiN
तेरी आरज़ू, तेरी चाह मेंभटकी ना मै, किस राह मेंइतने में मिल जाता ख़ुदातुम यक़ीं करो के नहीं करो
बहुत मुश्किल है बच पानानिगाहों के निशाने सेये अक्सर करती हैं घायलमिलने के बहाने से
बा-अदब नाम लिया करउस शख़्स का, ए दिलवो बेवफ़ा होने से पहलेजान-ए-दिल रह चुका है