Iltijaa

कहाँ तक इल्तिजा की जाए
ये आरज़ू अब भुला दी जाए

हो गई आदत अंधेरों की
क्यों ना शम्मा बुझा दी जाए

Prashant V Shrivastava (Musafir)

Shaayari

मुद्दतों से ज़माने के दबे कुचले
ख़यालात को रास्ता हो जाता है
शायरी ज़माने को ख़ुश रखती हैं
और मेरा दिल हल्का हो जाता हैं

Na neend lauti

आँखों में नींद का बुलबुला सा था
ज़रा आँख खुली तो कहीं उड़ गया
उसके जाते ही याद का क़ाफ़िला आया
फिर ना नींद लौटी मेरी ना तेरी याद गई