prashant
Tere Andaaz
मेरे अल्फ़ाज़ में
तेरे अन्दाज़ गर
शामिल ना होते
मुझे ख़यालों के
ये सब अहसास
हासिल ना होते
Wo AankhoN meiN Rahta bhi nahiN
वो आँखों में रहता भी नहीं
वो आँखों से बहता भी नहीं
वो ख़फ़ा है आँखों की नमी पर
वो आँखों को सहता भी नहीं
Aa Chukaa Hoon Mai
आख़िरी अश्क़ कल शब बहा चुका हूँ मैदामन की नमी को अब सुखा चुका हूँ मैअब हर सितम के बदले, फ़क़त यलगार होगाकह दो दुनिया-ए-फ़ानी से, आ चुका हूँ मै
jab wo khwaab hua karta tha
Uski sachchaai dekhkar mai to bas hairaN hu
Wo bhalaa tha jab wo khwaab hua karta tha
jab aapka deedaar kiyaa
Tehzeeb-o-adab ko jaise, har tarhaa dar-kinaar kiyaa
Bekhwaab meri in aankhon ne jab aapka deedaar kiyaa