Poetry by Prashant
Meri AankhoN se
मेरी आँखों से पढ़ लिया करो
मेरे जज़्बात की हिकायतें
अल्फ़ाज़ कितने भी उलझे हों
लोग समझ ही जाया करते हैं
Iltijaa
कहाँ तक इल्तिजा की जाए
ये आरज़ू अब भुला दी जाए
हो गई आदत अंधेरों की
क्यों ना शम्मा बुझा दी जाए
Prashant V Shrivastava (Musafir)
Shaayari
मुद्दतों से ज़माने के दबे कुचले
ख़यालात को रास्ता हो जाता है
शायरी ज़माने को ख़ुश रखती हैं
और मेरा दिल हल्का हो जाता हैं
Na neend lauti
आँखों में नींद का बुलबुला सा था
ज़रा आँख खुली तो कहीं उड़ गया
उसके जाते ही याद का क़ाफ़िला आया
फिर ना नींद लौटी मेरी ना तेरी याद गई
Mere Khwaab
Mujhe milaakar, meri har cheez, badal chuki hai
Nahi badle, to mere khwaan, wo ab bhi wahi haiN
Teri Aarzoo
तेरी आरज़ू, तेरी चाह मेंभटकी ना मै, किस राह मेंइतने में मिल जाता ख़ुदातुम यक़ीं करो के नहीं करो
NigaahoN Ke Nishaane Se
बहुत मुश्किल है बच पानानिगाहों के निशाने सेये अक्सर करती हैं घायलमिलने के बहाने से