Wo AankhoN meiN Rahta bhi nahiN
वो आँखों में रहता भी नहीं
वो आँखों से बहता भी नहीं
वो ख़फ़ा है आँखों की नमी पर
वो आँखों को सहता भी नहीं
वो आँखों में रहता भी नहीं
वो आँखों से बहता भी नहीं
वो ख़फ़ा है आँखों की नमी पर
वो आँखों को सहता भी नहीं
एक तरफ़ा मुहब्बत थी
फ़ैसला बाहमी क्या होता
जिसमें खारे अश्क़ मिलाये
वो दरिया चाशनी क्या होता
मेरी आँखों से पढ़ लिया करो
मेरे जज़्बात की हिकायतें
अल्फ़ाज़ कितने भी उलझे हों
लोग समझ ही जाया करते हैं
कहाँ तक इल्तिजा की जाए
ये आरज़ू अब भुला दी जाए
हो गई आदत अंधेरों की
क्यों ना शम्मा बुझा दी जाए
Prashant V Shrivastava (Musafir)
रूख़्सार पे जो भँवर का नज़ारा हुआ है
फ़स्ल-ए-गुल बहाल हो, इशारा हुआ है
अभी रोके रखना बहारों को आसमान पे
अभी एक नाज़नीं को ज़मीं पे उतारा हुआ है
तुम्हें किस तरहा से पुकारा करें
कोई नाम लें या इशारा करें
तुम्हारी आँखों से जो रिश्ते हो चले हैं
डूब के जाँ बचाएँ, या किनारा करें