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Majhdhaar
इस पार कुछ ना था, उस पार क्या हुआ
साहिल के प्यार में, मँझधार क्या हुआ
ख़ंजर तो अब भी उसके हाथों में है
फिर मेरे सीने के आर पार क्या हुआ
Maraasim
शायरी की शक्ल में
हाल-ए-दिल, भिजवाता रहूँगा
तेरी यादों से बड़े मरासिम हैं
मै आता जाता रहूँगा
Aye Nazar
पलकों में पिघले सपनों का मलबा
अब जो सख़्त हो चला है
ए नज़र ज़रा बाहर देख के बता
शायद उसकी यादों का वक़्त हो चला है
Ashq
वीरानों से मुहब्बत की है
तनहाइयों को जिया है मैने
हर कतरा महफ़ूज़ रखा है
कब अश्क़ बहने दिया है मैने
Tumhaare Lab
तुम्हें देखते ही जैसे शरारत से भर जातीं हैं
ये हवाएँ जो ज़ुल्फ़ें हटाते हुए, लब खिलातीं हैं