Banjar
मुहब्बत एक नशा है
मुहब्बत एक नशा भी है
दिल जिगर की बरबादी भी
जहाँ एक बार अफ़ीम हो जाए
वो ज़मीं बंजर हो जाती है
मुहब्बत एक नशा है
मुहब्बत एक नशा भी है
दिल जिगर की बरबादी भी
जहाँ एक बार अफ़ीम हो जाए
वो ज़मीं बंजर हो जाती है
अंधेरों की तरफ़ देख कर
अक्सर खामोशियाँ सुनता हूँ
कोई मेरे ख़्वाब का पैकर है
मै भी सपना किसी की आँख का हूँ
इस पार कुछ ना था, उस पार क्या हुआ
साहिल के प्यार में, मँझधार क्या हुआ
ख़ंजर तो अब भी उसके हाथों में है
फिर मेरे सीने के आर पार क्या हुआ
शायरी की शक्ल में
हाल-ए-दिल, भिजवाता रहूँगा
तेरी यादों से बड़े मरासिम हैं
मै आता जाता रहूँगा
पलकों में पिघले सपनों का मलबा
अब जो सख़्त हो चला है
ए नज़र ज़रा बाहर देख के बता
शायद उसकी यादों का वक़्त हो चला है