poet prash
गिला भी न कर सकोगे
पिघले-पिघले से लहजे में
जो तुमसे मुखातिब होता हूँ
तुम जो कुछ भी फरमाते हो
मै तुम्हारी जानिब होता हूँ
गर मै भी मनचला हो गया
गिला भी न कर सकोगे
पिघले-पिघले से लहजे में
जो तुमसे मुखातिब होता हूँ
तुम जो कुछ भी फरमाते हो
मै तुम्हारी जानिब होता हूँ
गर मै भी मनचला हो गया
गिला भी न कर सकोगे