उफ़ तेरे लबों के गुलाबों की हरकतों का इंक़लाब
सदियाँ लग जाती हैं ऐसे जलवे समेटने के लिए
चाशनी से लबरेज़ ये भीगे लब तुम्हारे
ज़रा सी बात पर तबस्सुम छलकाते हैं
हवाओं में उड़ती फिरती है हँसी तुम्हारी
कहीं आसमा तुम्हारा, कहीं ज़मीं तुम्हारी
कई जनम चाहिए, ये रिश्ते समझने के लिए
सदियाँ लग जाती हैं ऐसे जलवे समेटने के लिए