तुम्हारी याद ना आई, उदासियाँ गुम हैं
है मुंतशिर ग़ज़ल भी, क़ाफ़िया गुम है
क्या हुआ आज के तुम्हारी यादें न आईं
देखो मेरी उदासियाँ भी खोईं हुईं हैं
के जिस तरहा क़ाफ़िया न मिलने पर
एक ग़ज़ल (शेर ) बिखरी सी लगती है
Tumhaari yaad na aai, udaasiyaaN gum hai
Hai Muntshir Gazal bhi, Qaafiyaa gum hai
Your memories didn’t arrive today, hence, the sadness seems lost
Just like a Gazal remains scattered when the Qaafiya is not there!