तुम्हें सोच के, लिखे थे जो,
वो अलफ़ाज़ ग़ज़ल हो गए
फिर यूँ हुआ
तुम मिल गए
और जान-ए-ग़ज़ल हो गए
अब ख्वाबों की किताबों से
एक -एक सपहा पलटता हूँ
हर रोज़ तुम्हें ख्वाबों की नज़र
मै नई नज़र से देखता हूँ
सब ख्वाब मेरे
जज़्बात मेरे
एक जागी सी ग़ज़ल हो गए
फिर यूँ हुआ
तुम मिल गए
और जान-ए-ग़ज़ल हो गए
Prashant V Shrivastava
Categories: Uncategorized