आओ चलें. फिर उदास सरिता सजन आओ चलें लहर के पार।
उछल – उछल बह रहा नदी – जल दो फूलों से मर्यादित।
ज्यों आवेश सपन का भाग्य दिवारों से बाधित।
फिर उजास में तम सजन आओं चलें चाँद के पार।
भरी – भरी बदली मन की बरस न पायी खुलकर।
रह गई संवेदनाएँ हृदय – सिंधु में धुलकर ।
फिर टूट गया दर्पण सजन आओं चलें बिंब के पार।
स्व – पर का भेद बढा सजन आओं चलें खुदी के पार ।।
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