एक ऊंची इमारत के खाने में रह के लगा
जैसे चाँद से दूरी अब कम हो गई है
आज जब ज़रुरत थी चांदनी की मुझे
पता चला वो बालकनी में राशन पे मिलती है
by Prashant V Shrivastava
एक ऊंची इमारत के खाने में रह के लगा
जैसे चाँद से दूरी अब कम हो गई है
आज जब ज़रुरत थी चांदनी की मुझे
पता चला वो बालकनी में राशन पे मिलती है
by Prashant V Shrivastava