तेरी यादों से बोझल ये दिल, भरा-भरा सा है
आँखों में अश्क़ नहीं लेकिन, धुआँ-धुआँ सा है
हर नज़्म में रंज छलकता है
हर शेर में आँहें होती हैं
जाने क्यूँ दश्त ही चुनता हूँ
गुलों की भी राहें होतीं हैं
जैसे ज़हन में अच्छे से, ग़म घुला-घुला सा है
आँखों में अश्क़ नहीं लेकिन, धुआँ-धुआँ सा है
जब तुझसे वास्ता रहा नहीं
फिर यादों की उलझन क्यूँ है
हर लम्हा कोई दुशवारी है
सब ऐसे ही मौसम क्यूँ है
अब तोड़ दे बाक़ी जो, हम में सिलसिला सा है
आँखों में अश्क़ नहीं लेकिन, धुआँ-धुआँ सा है
आँखों की अजब सी फ़ितरत है
ये ख़ुशियाँ बहा ही देती हैं
लेकिन ग़म चिपका रहता है
और नज़रें बोसीदा रहती हैं
जिस चेहरे की है आरज़ू, वो दवा-दुआ सा है
आँखों में अश्क़ नहीं लेकिन, धुआँ-धुआँ सा है