देवी नागरानी
अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल
खुश्क होठों की तिश्नगी है ग़ज़ल
उन दहकते से मंज़रो की क़सम
इक दहकती सी जो कही है ग़ज़ल
नर्म अहसास मुझको देती है
धूप में चांदनी लगी है ग़ज़ल
इक इबादत से कम नहीं हर्गिज़
बंदगी सी मुझे लगी है ग़ज़ल
बोलता है हर एक लफ़्ज़ उसका
गुफ़्तगू यूँ भी कर रही है ग़ज़ल
मेहराबाँ इस क़दर हुई मुझपर
उसमें हिंदोस्ताँ की खु़शबू है
अपनी धरती से जब जुड़ी है ग़ज़ल
उसका श्रंगार क्या करूँ ‘ देवी’
सादगी में भी सज रही है ग़ज़ल