![Mukesh Kumar Pandya](http://www.shayarana.com/wp-content/uploads/2015/03/IMG-20141019-WA0007-1-300x300.jpg)
आदमी उलझनों में खोया है
आप कहते रहें कि सोया है
है मुकम्मल ग़ज़ल हरेक बश़र
बस इसे फिक्र ने डुबोया है
जो लहू से जरा नहीं भीगा
आँसुओं ने उसे भिगोया है
पाप और पुण्य फलसफे लोगों
नीयतों ने ही सब सँजोया है
ताब सच की वो ला नहीं सकता
जब कहा आदमी ने रोया है
जी लिया पल तो पा लिया है मुकेश
सांस दर सांस खर्च गोया है
©मुकेश कुमार पंड्या