ये जो बात-बात मुझसे मुहब्बत
साबित करवाते हो ना
जिस दिन मै बेवफ़ा हो गया
गिला भी न कर सकोगे
पिघले-पिघले से लहजे में
जो तुमसे मुखातिब होता हूँ
तुम जो कुछ भी फरमाते हो
मै तुम्हारी जानिब होता हूँ
गर मै भी मनचला हो गया
गिला भी न कर सकोगे
वही इश्क़ आसमां छूता है
जिसे हासिल कोई ज़मीन हो
वही लोग इश्क़ कर पाते हैं
जिनमें चौतरफ़ा यक़ीन हो
गर हमसे हौसला खो गया
गिला भी न कर सकोगे
prashant V Shrivastava