मेरे अल्फ़ाज़ में
तेरे अन्दाज़ गर
शामिल ना होते
मुझे ख़यालों के
ये सब अहसास
हासिल ना होते
मेरे अल्फ़ाज़ में
तेरे अन्दाज़ गर
शामिल ना होते
मुझे ख़यालों के
ये सब अहसास
हासिल ना होते
मेरी हक़ीक़त में तू भले ही फ़क़त एक ख़्वाब है
मगर यक़ीन जान, मै ये वक़्त बदलना ही नहीं चाहता
सुनते थे गुल-ओ-गुलफ़ाम हैं
और मय छलकी रहती है
उन सुर्ख़ लबों से पर सच में
चिंगरियाँ उड़ती रहतीं हैं
मैने ख़ुद ही चुनी थी
सो मैने ये पाई है
हूँ मै रास्तों पे जिनकी
मंज़िल ही तनहाई है
कहाँ मै दिल की,,,सुनता ना था
कहाँ मै दिल की,,,राहों पे हूँ
मै वफ़ाओं का मुन्तज़र
और जफ़ाओं का ये शहर
सच ही कहता था फ़क़ीरा
तेरा कुछ हो नहीं सकता
हुस्न-ओ-बहार की, चादर लपेटे हुए
मैंने चाँद देखा है, नज़ाकत समेटे हुए
उसकी आँखें जो ठहर जाती हैं
मेरी आँखों पर
मुद्दतों तक मुझे तन्हाई से निजात होता है
दिल की जो भी हसरत थी
गुनगुना दी हमने
लबों को वो ना समझे
आँखें सुना दी हमने
अभी उलझा हूँ दिल के पुर्ज़े सम्भालने में
मगर हर पत्थर का जवाब मै दूँगा ज़रूर