अभी उलझा हूँ दिल के पुर्ज़े सम्भालने में
मगर हर पत्थर का जवाब मै दूँगा ज़रूर
Poetry
Wo AankhoN meiN Rahta bhi nahiN
वो आँखों में रहता भी नहीं
वो आँखों से बहता भी नहीं
वो ख़फ़ा है आँखों की नमी पर
वो आँखों को सहता भी नहीं
Dil to toot_ta hi rahta hai
तुम ख़्वाबों को तवज्जो दिया करो मुसाफ़िर
दिल तो टूटता ही रहता है
Zindagi, teri marzi
जो ये नहीं तो ये ही सही
ज़िन्दगी तेरी मर्ज़ी ही सही
Meri AankhoN se
मेरी आँखों से पढ़ लिया करो
मेरे जज़्बात की हिकायतें
अल्फ़ाज़ कितने भी उलझे हों
लोग समझ ही जाया करते हैं
Iltijaa
कहाँ तक इल्तिजा की जाए
ये आरज़ू अब भुला दी जाए
हो गई आदत अंधेरों की
क्यों ना शम्मा बुझा दी जाए
Prashant V Shrivastava (Musafir)
Maraasim
शायरी की शक्ल में
हाल-ए-दिल, भिजवाता रहूँगा
तेरी यादों से बड़े मरासिम हैं
मै आता जाता रहूँगा
Aye Nazar
पलकों में पिघले सपनों का मलबा
अब जो सख़्त हो चला है
ए नज़र ज़रा बाहर देख के बता
शायद उसकी यादों का वक़्त हो चला है
Ashq
वीरानों से मुहब्बत की है
तनहाइयों को जिया है मैने
हर कतरा महफ़ूज़ रखा है
कब अश्क़ बहने दिया है मैने
Tumhaare Lab
तुम्हें देखते ही जैसे शरारत से भर जातीं हैं
ये हवाएँ जो ज़ुल्फ़ें हटाते हुए, लब खिलातीं हैं