गिला भी न कर सकोगे

पिघले-पिघले से लहजे में
जो तुमसे मुखातिब होता हूँ
तुम जो कुछ भी फरमाते हो
मै तुम्हारी जानिब होता हूँ
गर मै भी मनचला हो गया
गिला भी न कर सकोगे

शराब का जो नशा है

शराब का जो नशा है सुकून जैसा है
ये ज़िन्दगी की मुश्किलों के हल जैसा है
यकीं तो तभी होगा जब पी कर देखिएगा
ये ज़िन्दगी के शोरे में एक ग़ज़ल जैसा है