हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये

हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये

देवी नागरानी
तिरंगा हमारा हो ऊँचा जहाँ
निगाहों में वो आसमाँ चाहिये

खिले फूल भाषा के ‘देवी’ जहाँ
उसी बाग़ में आशियाँ चाहिये.