कुछ पत्ते उगे थे ताबिर में तुम्हारे
हरफ़-दर-हरफ़ ये मुंतज़ीर थे तुम्हारे
पर रात के सहर की तरह तुम ना आई
तो अब सुख के झ़ड़ रहे हैं आबशार में तुम्हारे
एक काम करो जाना
अपने उन्स का पानी डालो
और इन्हे फिर से हरा कर दो
– बिस्मिल
Categories: Love Shayeri
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