Kuchh toota to nahiN

मेरी आवाज़ की ख़राश सुन के उसने पूछा
कुछ टूटा तो नहीं
मैंने सीने पर हाथ रख के कहा, नहीं,
कुछ भी तो नहीं

Prashant V Shrivastava

Prashant V Shrivastava

मै उसी के रूबरू
उसी की मुहब्बत में
टूटता रहा
जितनी दूरियाँ उसने बनाई
उतनी नाराज़गी मैंने बढ़ाई
मै खुद से रूठता रहा
अब वो किसी गैर की होकर,
मुझसे गैर होने को है
ये क्यूँ हुआ, ये क्यूँ होना है, कुछ पता है
कुछ भी तो नहीं

वो अश्क़ जो मै बहा न सका
वो अंदर दिल तक पहुँच गए हैं
सुना है दिल डूब चूका है
और भारी सा हो गया है
मै नातवाँ, मुझसे ये दर्द नहीं उठाया जाता
इस दिल को कैसे उठा लूँ
अपने ही सीने में
बेखुद होकर मैंने, जो खुद से लिया दिया है
खुद नींद जगाई थी, ख़्वाब के यकीं पर
क्या था मेरा, क्या गंवाया है, कुछ भी तो नहीं



Categories: Small Verses / Mukhtsar Kalaam

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