हर गुज़रे दिन पर, नए दिन की परत होती है
आज का ये दिन, तमाम गुज़रे दिनों की छत पर बैठा है
इसी सिलसिले में वो दिन भी दबे होंगे कहीं
जिनमें मुलाक़ातें बाक़ायदा हुआ करती थी तुमसे
आज जो यादें सुनाई और दिखाई दे रही हैं
कल उनके सब निशाँ बहुत गहराई के बोझ तले मर चुके होंगे
मुझे इल्म है, मुझे पता है, यकीं भी है
इसीलिए मैंने तुम्हारी यादों से अपने लिए तन्हाईयाँ चुरा ली थीं
ये तन्हाईयाँ वक़्त के पन्नों की मोहताज नहीं हैं
ये तन्हाईयाँ हर पन्ने पर मेरे नाम के साथ छपती हैं
ये आख़िरी पन्ने तक मेरे साथ रहेंगीतन्हाइयाँ भी हमने तेरी सम्हाल रखी हैं
ये और बात है तुझे लौटाने की नीयत नहींजो तुझ से साझा किये थे कभी
वो सब राज़ फिर से दफ़न हो गए
वो बोलते रहने की लत लौट गई
अब हम खामोश आदतन हो गए
छुपा के रखता हूँ, तुझसे चुराए लम्हे
तेरा सब कुछ, तुझे लौटाने की नीयत नहीं
Prashant V Shrivastava
Categories: Love Shayeri, Small Verses / Mukhtsar Kalaam