आदमी उलझनों में खोया है

Mukesh Kumar Pandya

Mukesh Kumar Pandya

आदमी उलझनों में खोया है
आप कहते रहें कि सोया है
है मुकम्मल ग़ज़ल हरेक बश़र
बस इसे फिक्र ने डुबोया है
जो लहू से जरा नहीं भीगा
आँसुओं ने उसे भिगोया है
पाप और पुण्य फलसफे लोगों
नीयतों ने ही सब सँजोया है
ताब सच की वो ला नहीं सकता
जब कहा आदमी ने रोया है
जी लिया पल तो पा लिया है मुकेश
सांस दर सांस खर्च गोया है
©मुकेश कुमार पंड्या



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