दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था

Devi Nangrani

देवी नागरानी
दीवारो-दर थे, छत थी वो अच्छा मकान था
दो चार तीलियों पे ही कितना गुमान था.

जब तक कि दिल में तेरी यादें जवान थीं
छोटे से एक घर में ही सारा जहान था.

शब्दों के तीर छोडे गये मुझपे इस तरह
हर ज़ख़्म का हमारे दिल पर निशान था.

तन्हा नहीं है तू ही यहां और हैं बहुत
तेरे न मेरे सर पे कोई सायबान था.

कोई नहीं था ‘देवी’ गर्दिश में मेरे साथ
बस मैं, मिरा मुक़द्दर और आसमान था.

Leave a Comment