आओ चलें लहर के पार

आओ चलें. फिर उदास सरिता सजन आओ चलें लहर के पार।

उछल – उछल बह रहा नदी – जल दो फूलों से मर्यादित।

ज्यों आवेश सपन का भाग्य दिवारों से बाधित।

फिर उजास में तम सजन आओं चलें चाँद के पार।

Let's go across!

भरी – भरी बदली मन की बरस न पायी खुलकर।

रह गई संवेदनाएँ हृदय – सिंधु में धुलकर ।

फिर टूट गया दर्पण सजन आओं चलें बिंब के पार।

स्व – पर का भेद बढा सजन आओं चलें खुदी के पार ।।

Image Credit: http://www.dreamstime.com/stock-photo-boat-rimagefree1077968-resi3378709

Leave a Comment